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आपराधिक कानून

वैवाहिक विवाद के पश्चात् बच्चे की अभिरक्षा

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 23-Jul-2025

एक्स. बनाम वाई. 

"वैवाहिक विवादों के पश्चात् संतान का पति की अभिरक्षा में रहना भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क के अधीन क्रूरता नहीं है।" 

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा 

स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

दिल्लीउच्च न्यायालय ने वैवाहिक विवाद मामले में ससुराल वालों के विरुद्ध दायर आरोपपत्र को खारिज करते हुए कहा कि "केवल इस कारण से कि वैवाहिक विवाद उत्पन्न होने के पश्चात् संतान पति की अभिरक्षा में थी, उसेभारतीय दण्ड संहिता,1860 कीधारा 498 (अबभारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) कीधारा 85 और धारा 86 ) के अंतर्गत क्रूरता या उत्पीड़न नहीं माना जा सकता।" न्यायालय ने वास्तविक पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करते हुए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क के दुरुपयोग को रोकने की आवश्यकता पर बल दिया। 

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक्स. बनाम वाई. (2025)मामले में यह निर्णय दिया 

एक्स. बनाम वाई. (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • याचिकाकर्त्ताओं नेभारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क के अधीन उनके विरुद्ध दायरआरोपपत्र को रद्द करने की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 
  • परिवादकर्त्ता पत्नी ने अपने पति द्वारा दायर तलाक के मामले के प्रतिशोध में 2015 मेंअपने ससुराल वालों के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराई थी। 
  • वैवाहिक मतभेद के कारणदोनों पक्ष पृथक् हो गए, किंतु बालक की अभिरक्षा पति और उसके माता-पिता के पास ही रही। 
  • पति का यह आरोप था कि पत्नी को मानसिक विकार (violent psychotic fits) की समस्या थी, जिसे पत्नी के परिवार ने जान-बूझकर छुपाया, जिससे वह एवं उसका परिवार अनभिज्ञ रहा। 
  • आपराधिक मामले के अतिरिक्त, पत्नी नेदहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का अभिकथन करते हुए भरण-पोषण की मांग करते हुएकई परिवाद भी दर्ज कराए थे 
  • पति के परिवार ने तर्क दिया कि पत्नीबाइपोलर मैनिक डिसऑर्डर (Bipolar Manic Disorder) से पीड़ित है, और उसकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये उन पर दबाव डालने के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं 

  • न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा नेकहा कि यह ऐसा मामला था, जिसमें पति और पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध नहीं चल रहा था और प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) "ससुराल वालों को घुटने टेकने पर मजबूर करने" के लिये दर्ज की गई थी।  
  • न्यायालय ने कहा कि "भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और धारा 86) परिवादकर्त्ताओं के लिये बढ़ा-चढ़ाकर और मनगढ़ंत अभिकथनों वाली मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज करवाकर अपना हिसाब चुकता करने का एक आसान हथियार बन गई है।" 
  • न्यायालय नेइस बात का कोई प्रमाण नहींपाया कि विवाह से पहले या विवाह के समय दहेज की कोई मांग की गई थी, तथा पत्नी के परिवार ने अपनी हैसियत के अनुसार विवाह सम्पन्न कराया था। 
  • मानसिक स्वास्थ्य संबंधी अभिकथनों के संबंध में न्यायालय ने कहा: "उसके मानसिक मनोवैज्ञानिक संकेतक चाहे जो भी रहे हों, ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि परिवादकर्त्ता को कोई जबरदस्ती दवा दी जा रही थी या इससे उसके स्वास्थ्य को कोई नुकसान पहुँचा था।" 
  • न्यायालय ने इस मामले को " भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और धारा 86) के हितकारी उपबंध के दुरुपयोग का उत्कृष्ट उदाहरण" बताया और कहा कि यह "न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग" है। 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि जहाँसच्चे पीड़ितों को न्याय मिलना चाहिये, वहीं न्यायालयों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि "न्याय वितरण प्रणाली में विश्वसनीयता और विश्वास" बनाए रखने के लिये धारा दण्ड संहिता की धारा 498 (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 और धारा 86) का दुरुपयोग न होने दिया जाए।  

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498 क्या है? 

बारे में: 

  • विवाहित महिलाओं के प्रति दहेज संबंधी उत्पीड़न और क्रूरता की बढ़ती समस्या से निपटने के लिये भारतीय दण्ड संहिता मेंधारा 498क जोड़ी गई। 
  • यह धारा"किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना"को संज्ञेय, अजमानतीय और अशमनीय अपराध बनाती है। 
  • इसमेंपति या उसके नातेदारों द्वारा स्त्री पर की गईशारीरिक और मानसिक क्रूरता दोनों को सम्मिलित किया गया है। 
  • यह उपबंधस्त्रियों को घरेलू हिंसा और दहेज संबंधी उत्पीड़न से बचाने के लिये एकसामाजिक विधि के रूप में लागू किया गया था। 

आवश्यक तत्त्व: 

  • विषय: पति या पति का नातेदार 
  • वस्तु: ऐसे पति की पत्नी 
  • Mens Rea: क्रूरता करने का आशय 
  • Actus Reus: आचरण जो क्रूरता के समान है 

धारा 498क के अधीन क्रूरता की परिभाषा: 

  • कोई भीजानबूझकर किया गया आचरणजो ऐसी प्रकृति का हो जिससे स्त्री को आत्महत्या करने के लिये प्रेरित किया जा सके या महिला के जीवन, अंग या स्वास्थ्य को गंभीर चोट या खतरा हो। 
  • महिला का उत्पीड़न, जहाँ ऐसा प्रपीड़न उसे या उसके किसी भी संबंधित व्यक्ति को किसी भी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की किसी भी विधिविरुद्ध मांग को पूरा करने के लिये मजबूर करने के उद्देश्य से किया जाता है। 

दण्ड: 

  • कारावासजो तीन वर्ष तक का हो सकता है। 
  • जुर्मानाया दोनों. 
  • यह अपराधसंज्ञेय, अजमानतीय और अशमनीय है। 

तुलना: भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क बनाम भारतीय न्याय संहिता की धारा 85-86 

  • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क कोभारतीय न्याय संहिता की धारा 85-86 से प्रतिस्थापित किया गया है, जो 1 जुलाई 2024 से प्रभावी होगी। 
  • जबकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क के 'स्पष्टीकरण' खण्ड में ही क्रूरता की परिभाषा थी, भारतीय न्याय संहिता नेबेहतर स्पष्टता के लियेअपराध (धारा 85) को परिभाषा (धारा 86) से पृथक् कर दिया है । 
  • मूलउपबंध समान हैं - दोनों में 3 वर्ष तक के कारावास और जुर्माने का उपबंध है, तथा क्रूरता की परिभाषा भी समान है, जिसमें जानबूझकर किया गया आचरण और विधिविरुद्ध मांगों के लिये प्रपीड़न सम्मिलित है। 
  • भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 में "जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा"का प्रयोग किया गया है , जिससे कारावास के साथ-साथ जुर्माना भी अनिवार्य है, जबकि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498क में "जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा"का उपबंध है, किंतु निर्वचन समान ही रहा